Saturday, 5 June 2021

Importance of plant as per scriptures | पेड़ो का महत्व शास्त्र में

 जय श्रीहरि विष्णु अनादि काल से ही भारत मे प्रकृति से सामंजस्य बना कर चलने की परंपरा रही है न कि इसे चुनौती देने की।

हिन्दूधर्म शास्त्रों के अनुसार चले तो एक मानव की पूरी जीवन शैली, दिनचर्या प्रकृति के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ी है जो हर तरह से जीवो पर दया एवं अहिंसक होने का संदेश देती है। आइए देखते हैं ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य एवं परम्पराओ को।

सुबह सो कर उठते ही हमारे शास्त्रों के अनुसार धरती माता की वंदना करने का प्रावधान है यह प्रार्थना हमारे स्कूलों में भी होती है-

समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते । विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे ॥

सुबह उठते ही हम सर्वप्रथम धरती माता को वंदन करते है एवं उनसे क्षमा याचना करते है की हम उन पर न चाहते भी पैर रख रहे है। यह हमारी कृतज्ञता माँ धरती के लिए।


 पूजन के समय हम इस मंत्र को जरूर सुनते हैं-

गङ्गेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । 

नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ।

इस मंत्र के माध्यम से हम सप्त नदियों को स्मरण करते हैं और जिसका स्मरण हम पूजा में करें उनका संरक्षण तो करेंगे ही।


हिन्दू धर्म मे वृक्षो को अत्यधिक महत्व दिया गया है।

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आँवला और पाँच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक नही जाता।

पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अद्भुत क्षमता है।


गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, अश्‍वत्‍थ: सर्ववृक्षाणां अर्थात की वृक्षों में वह पीपल हैं।

पीपल के गुणों के बारे में भागवत में कहा गया है कि

।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।

अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।


बरगद को वटवृक्ष कहा जाता है। हिंदू धर्म में वट सावत्री नामक एक त्योहार पूरी तरह से वट को ही समर्पित है। हिंदू धर्मानुसार चार वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त चार वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।

श्रीरामचरित मानस में भी वट वृक्ष के महिमा का बखान किया गया है।

।।तहँ पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।।

भावार्थ-अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहाँ तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।


राजा विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता' नाम के अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है।


वराहमिहिर के अनुसार जिस वर्ष शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस वर्ष सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपत्ती का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आनेवाली विपत्ती से निजात पा सकता है।


श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसके नीचे विश्राम या ध्यान करने से सभी तरह के मानसिक संताप मिट जाते हैं तथा मन स्थिर हो जाता है। स्थिर चित्त ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है या कोई महान कार्य कर सकता है। वृक्ष हमारे मन को स्थिर और शां‍त रखने की ताकत रखते हैं। चित्त की स्थिरता से साक्षित्व या हमारे भीतर का दृष्‍टापन गहराता है। हमारे ऋषि-मुनि, बुद्ध पुरुष, अरिहंत, भगवान आदि सभी पीपल के नीचे बैठकर ही ध्यान करते थे। उक्त वृक्ष के नीचे ही बैठकर बुद्ध और महावीर स्वामी ने तपस्या का उल्लेख है।


इसी प्रकार हमें विभिन्न प्रकार के जीवों के संरक्षण के लिए भी बताया गया है। और अंत मे हिन्दू धर्म हर प्रकार से जीव हत्या को प्रतिबंधित करता है।

यह सब कही न कहीं प्रकृति के संरक्षण में योगदान देते हैं। आज विकास की अंधी दौड़ में हम इन सब बातों को दकियानूसी कह कर अपने ही विनाश के रास्ते पर चल पड़े हैं। अभी भी समय है कि हम सम्भल जाएं।

पर्यावरण संरक्षण को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए न कि वर्ष के एक विशेष दिन। मांसाहार का त्याग करना चाहिए। चमड़े या इससे बनी वस्तु का उपयोग नही करना चाहिए। तभी जा कर हम पर्यावण संरक्षण कर सकते हैं

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